अरावली रिट्रीट वेलफेयर एसोसिएशन ने अंसल पहाड़ी पर होने वाली तोड़ फोड़ पर जताई आपत्ति-
अंसल पहाड़ी पर की जाने वाली तोड़ फोड़ को लेकर अरावली रिट्रीट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा एक बैठक का आयोजन किया गया-
अरावली रिट्रीट वेलफेयर एसोसिएशन ने अंसल पहाड़ी पर होने वाली तोड़ फोड़ पर जताई आपत्ति-
बैठक में आरडब्ल्यूए के अध्य्क्ष राजेश वत्स ने नगर परिषद के अधिकारियों द्वारा की जाने वाली तोड़- लेकर विरोध जाहिर किया –
जून 2020 में जिलाधीश, गुरुग्राम ने एक मनमाना आदेश पारित कर भूमि की प्रकृति को “ग़ैर मुमकिन फ़ार्म हाउस” से “ग़ैर मुमकिन पहाड़” में बदल दिया-
इस आदेश को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी-
सोहना,हरियाणा वरदान संवाददाता
सोहना नगर परिषद द्वारा रायसीना की अंसल पहाड़ी पर की जाने वाली तोड़ फोड़ को लेकर अरावली रिट्रीट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा एक बैठक का आयोजन किया गया जिस बैठक में आरडब्ल्यूए के अध्य्क्ष राजेश वत्स ने नगर परिषद के अधिकारियों द्वारा की जाने वाली तोड़ तोड़ लेकर विरोध जाहिर करते हुए कहा कि अरावली रिट्रीट” को 1989-90 में अंसल प्रॉपर्टीज़ एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड एवं इसकी सहयोगी कंपनियों द्वारा विकसित किया गया था। इस विकास कार्य के लिए हरियाणा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग तथा वन विभाग, हरियाणा सरकार से भी एनओसी ली गई थी।
डेवलपर ने इस क्षेत्र को एक पूर्ण विकसित फ़ार्म हाउस कॉलोनी बनाने के लिए भारी निवेश किया और सड़कों का निर्माण,जलापूर्ति पाइपलाइन बिछाना, ट्यूबवेल व पेड़ लगाना, फ़ार्म हाउसों की चार- दिवारी व मुख्य द्वार बनाना, तथा बिजली और टेलीफोन की लाइनें लगाना शामिल था। जिसके बाद यहां पर निवेश करने वाले सभी निवासियों ने ज़मीन की पूरी जांच-पड़ताल और वैध दस्तावेजों के आधार पर अपने फ़ार्म हाउस खरीदे थे जो कि राजस्व रिकॉर्ड में “ग़ैर मुमकिन फ़ार्म हाउस” दर्ज था।हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शिकायत के आधार पर, बोर्ड के चेयरमैन ने 29 जनवरी 2009 को जिला के उच्चस्तरीय अधिकारियों से इसकी जांच कराई गई थी। जिस जांच में राजश्व कमिश्नर से लेकर पटवारी तक शामिल थे.जिस जांच में स्पष्ट रूप से पुष्टि कि गई थी कि अंसल की सहयोगी कंपनियों ने 1987-88 में गाँव रायसीना के खेवट संख्या 28 और 29 में वैध रूप से भूमि खरीदी थी। उसके बाद, उन्होंने भूमि पर भारी भरकम निवेश मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई। साल 1989 की रबी और खरीफ की गिरदावरी में भूमि को ग़ैर मुमकिन मकान, ग़ैर मुमकिन फ़ार्म हाउस, ग़ैर मुमकिन सड़क के रूप में दर्ज किया गया जो साल 1990-91की जमाबंदी में में भी दर्ज है।जो लगातार साल 2005-06 तक जारी थी। जांच में यह भी बताया गया कि हल्का पटवारी ही भूमि की प्रकृति में परिवर्तन का सक्षम प्राधिकारी होता है और यह प्रविष्टियाँ स्थल सत्यापन के बाद वैधानिक रूप से की गई थीं।
इसके बावजूद, वर्ष 2006 से हरियाणा प्रदूषण विभाग द्वारा अरावली रिट्रीट के निवासियों के विरुद्ध लगभग 600 मुकदमे विशेष पर्यावरण न्यायालय, फरीदाबाद में दायर किए गए। लेकिन अब तक सभी मामलों में अदालत ने निवासियों को बरी कर दिया है, जो कि हाल में सिर्फ 9 मुकदमे लंबित हैं।
कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान जब पूरा देश संकट से जूझ रहा था, उस समय दिनांक 27 मई 2020 को नगर परिषद सोहना ने अरावली रिट्रीट के निवासियों को नोटिस जारी किए।जिस पर माननीय सिविल न्यायालय ने नगर परिषद के विरुद्ध स्थगन आदेश पारित किए।
लेकिन इसके कुछ समय बाद ही, जून 2020 में जिलाधीश, गुरुग्राम ने मात्र 5 पंक्तियों का एक मनमाना आदेश पारित कर भूमि की प्रकृति को “ग़ैर मुमकिन फ़ार्म हाउस” से “ग़ैर मुमकिन पहाड़” में बदल दिया। एसोसिएशन ने तुरंत इस आदेश को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी,जिसके बाद जून 2020 में जिलाधीश, गुरुग्राम ने मात्र 5 पंक्तियों का एक मनमाना आदेश पारित कर भूमि की प्रकृति को “ग़ैर मुमकिन फ़ार्म हाउस” से “ग़ैर मुमकिन पहाड़” में बदल दिया।
फिर भी अधिकारियों ने अदालत के आदेश की अवहेलना करते हुए रिकॉर्ड में अवैध रूप से भूमि की प्रकृति बदल दी। जबकि नगर परिषद सोहना के रिकॉर्ड में आज भी भूमि की प्रकृति कृषि/बागवानी दर्शाई गई है, फिर भी अधिकारी आए दिन निवासियों को अनुचित रूप से परेशान कर रहे हैं, लगातार हो रहे उत्पीड़न और गैरकानूनी कार्यवाहियों के खिलाफ, एसोसिएशन अब हरियाणा राज्य भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में सभी जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक शिकायत दर्ज कराने की तैयारी की है।
वत्स ने अंत में कहा, कि हमारी लड़ाई केवल हमारी भूमि की नहीं, बल्कि कानून के शासन और हर नागरिक के सम्मान की भी है। हम हर वैधानिक मंच पर अपनी वैधता सिद्ध कर चुके हैं और अब अंतिम सांस तक कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।