पानीपत में सेक्टर-23 टीडीआई में हजारों गज सरकारी जमीन के फर्जी दस्तावेज बनाकर बेच दिया गया। इससे सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगा है। हैरानी की बात है कि बेची गई जिस जमीन की निगम से प्रॉपर्टी आईडी बनवाई गई, तहसील से रजिस्टरी करवाई, वह जमीन लेआउट प्लान में पार्क, ग्रीन बेल्ट और यूडी लैंड की है। ऐसे में माना जा रहा है कि टीडीआई, निगम, तहसील, डीटीपी विभाग की मिलीभगत से सरकारी जमीन के फर्जी दस्तावेज बना कर बेच दिया गया। यही नहीं लोगों ने रजिस्टरी करवाने के बाद इमारतें तक बना ली हैं। मामले का खुलासा होने पर जिला योजनाकार की ओर से जब नोटिस जारी किया गया तो संबंधित अधिकारी का ही तबादला हो गया। अब नए डीटीपी की ओर से जांच के बाद आवश्यक कार्रवाई की बात कही जा रही है।
टीडीआई सेक्टर-23 के लेआउट प्लान में काफी भूमि सरकारी थी जो पार्क, ग्रीन बेल्ट और यूडीलैंड यानी अनिर्धारित जगह थी। आरोप है कि टीडीआई व इसकी सहयोगी फर्म महेश फार्म्स के पदाधिकारियों ने मिलकर इस जमीन की प्रॉपर्टी आईडी बनवा इसकी तहसील में रजिस्टरी करवा दी। इसके लिए षडयंत्र के तहत किसी ने पार्क की जमीन पर दीवारें बनाकर अंदर निर्माण चालू करवा दिया। वहीं किसी ने अपने घर मकान और कोठी से लगते पार्क की बांउड्री कर इसे अपने मकान में ही शामिल कर लिया। पार्क की जमीन पर कंटेनर रखवाकर इस पर अपना मालिकाना हक और कब्जा दिखा दिया। सरकारी भूमि पर प्लाट कर यहां निर्माण शुरू करवाया।
अधिकारियों की मिलीभगत से सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान होने के साथ इस जमीन के खरीदारों को भी करोड़ों की चपत लगी है। मामला उजागर होने के बाद अब जिला योजनाकार इन पर कार्रवाई करने की प्लानिंग बना रहा है। ऐसे में सरकारी जमीन को खरीदने वालों में भी डर बना हुआ है। ये लोग लगातार टीडीआई प्रबंधन को शिकायत कर रहे हैं। गौरतलब है कि इस मामले को लेकर पूर्व जिला पार्षद जोगिंद्र स्वामी ने प्रदर्शन कर जिला योजनाकार को इस भ्रष्टाचार की शिकायत दी थी, लेकिन शुरू में विभाग ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
यहां हुआ करोड़ों का गबन
ब्लॉक बी में सरकारी रास्ता बंद कर दिया गया। यहां टीडीआई ने पार्क बनाकर बेचने का प्रयास किया। प्राइवेट लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए ब्लॉक ए पार्क को काट कर बीच और साइड से सड़क निकाल दी, जबकि ये रास्ता नक्शे में ही नहीं है। एक पूर्व पार्षद ने ए ब्लॉक की यूडी लैंड की प्रॉपर्टी आइडी अपने नाम बनवाकर इसे खरीद लिया, जो बेची तक नहीं जा सकती। पार्क के कंटेनर रख उसकी प्रॉपर्टी आईडी बना दी। ऐसे-ऐसे करीब 20 प्लॉट बताए जा रहे हैं जिनको अवैध तरीके से बेच गया है। इनमें से कई पर निर्माण हो चुका है। बेची गई इस सरकारी जमीन का मालिक जिला योजनाकार है।